रामानुजन – गाथा
महानतम भारतीय गणितज्ञ - संख्या -सिद्धांत
शास्त्री श्रीनिवास रामानुजन की १२७वीं जयंती के उपलक्ष्य में सादर समर्पित !
[प्रस्तुत कविता–अंश अपनी दैनंदिनी (डायरी) “ गणिताञ्जलि ” से उद्धरित है]
थे
रामानुजन गणितज्ञ ऐसे, जिन्हें विश्व समादर देते थे।
जिनकी मोहिनी प्रतिभा के आगे सब , नतमस्तक हो जाते थे॥ १ ॥
जिनकी मोहिनी प्रतिभा के आगे सब , नतमस्तक हो जाते थे॥ १ ॥
अंक ही उनकी दुनिया , अंकों में खोए रहते थे।
अंक ही उनका ईश्वर, उन्हें ही वे पूजते थे॥ २ ॥
हमारी भारत माता ने , कितने रत्नों को जन्म दिया।
उन रत्नों ने ज्ञानदीप से , विश्व को प्रकाशमान किया॥ ३ ॥
ईश्वी सन अठारह सौ सतासी , बाईस दिसंबर आया था।
चिरस्मरणीय विश्व में सुन्दर , क्षण यह बनकर आया था॥ ४ ॥
गौरवपूर्ण दिवस यह , रामानुजन का अवतार हुआ।
गणित के इतिहास में , नयी प्रतिभा का आविर्भाव हुआ॥ ५ ॥
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पाँच
वर्ष की उम्र में उसने , अपना विद्यारम्भ किया ।
अपनी प्रतिभा से शिक्षकों को ,चकित करना शुरू किया॥ १० ॥
अपनी प्रतिभा से शिक्षकों को ,चकित करना शुरू किया॥ १० ॥
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गणित
में सर्वप्रथम आना, रामानुजन की अभिलाषा थी ।
अपर प्राइमरी कक्षा की , फिर से आई परीक्षा थी ॥ १८ ॥
बयालीस अंक पैंतालीस में से , अंकगणित में उन्होंने प्राप्त किया ।
शत प्रतिशत अंक प्राप्त न कर पाने का , भारी पश्चाताप हुआ ॥ १९ ॥
अपर प्राइमरी कक्षा की , फिर से आई परीक्षा थी ॥ १८ ॥
बयालीस अंक पैंतालीस में से , अंकगणित में उन्होंने प्राप्त किया ।
शत प्रतिशत अंक प्राप्त न कर पाने का , भारी पश्चाताप हुआ ॥ १९ ॥
दुखकातर ह्रदय उनका , घंटों अश्रुपात किया।
गणित ही उनका जीवन , गणित से बड़ा ही प्रेम किया ॥ २० ॥
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प्रथम
शोधपत्र था उनका, नवीन और अत्यंत दुरूह |
सामान्य
पाठक के लिए वह, न समझा गया अनुकूल ||६८||
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विश्व
को उनकी प्रतिभा का, अब जाकर आभास हुआ |
कई
गणितज्ञों से उनका सार्थक पत्राचार हुआ ||८४||
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सन
तेरह में जनवरी सोलह को हार्डी को प्रथम पत्र लिखा |
प्रमेयों
से परिपूर्ण वह पत्र, इतिहास में विश्व – प्रसिद्द हुआ ||८८||
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प्रथमतः
हार्डी ने उनके, शोधपत्र को समझा था |
उनकी
अनोखी प्रतिभा को अपार अलौकिक माना था ||९८||
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ट्रिनिटी
कॉलेज में प्रवेश पाकर कैम्ब्रिज वे चले गये |
अलौकिक
प्रतिभा से सबको, विस्मित वे करने लगे ||११४||
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अठारह
फरवरी सन अठारह, विश्व आज गौरवान्वित था |
रॉयल
सोसायटी लंदन ने, अपना फैलो मनोनीत किया था ||१५२||
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मद्रास
विश्विद्यालय ने भी, उनका समुचित सम्मान किया |
गणित
प्राचार्य का पदविशेष, तत्क्षण उनके लिए सृजित किया ||१५८||
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भारत
की प्रतिभा, भारत की काया, इंग्लैंड उनके प्रतिकूल था |
ठंडी
जलवायु, गिरती सेहत, लौटना भारत श्रेयस्कर था ||१६१||
उस
शोध – भूमि को छोड़ उन्होनें, भारत प्रस्थान किया |
वहां
पर अब शोध न कर पाने का, उन्हें अत्यंत खेद हुआ||१६२||
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कैसे
होते स्वस्थ? ईश्वर को यह मंजूर न था |
गणित
– साधना को विराम देना, रामानुजन को मंजूर न था ||१७७||
अंत
समय भी, मोक थीटा फंक्शन पर काम किया |
घनिष्ठ
मित्र हार्डी को, उन परिणामों से सूचित किया ||१७८||
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विकट
संकट में नहीं झुकने वाले, काल को वे पराजित कर न सके |
अपने
अनगिनत प्रेमी जन को, वे रोने से न रोक सके ||१८३||
सन
बीस में अप्रील छब्बीस को, वे ब्रह्माण्ड में समा गये |
अपनी
स्मृति को वे जनमानस में छोड़ गये ||१८४||
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