रामानुजन से (रामानुजन की जीवनी से) मेरा पहला परिचय कब हुआ - यह ठीक -
ठीक याद करना कठिन है, परन्तु इतना निश्चित है यह घटना शायद पाँचवीं
कक्षा से पहले की है. मैं अपने गाँव के एक दुकान में घर का कुछ सामान
खरीदने गया था, तभी दुकान के डेस्क पर पड़े ढेर सारे रद्दी कागजों के बीच एक
पत्रिका दिखी और मैंने उसमें देखा कि किसी गणितज्ञ की जीवनी थी. मुझे उसे
हासिल करने की उत्सुकता बढ़ गई, परन्तु पता नहीं क्यों नहीं माँग पाया. मन
में इच्छा को दबाकर लौट गया. मुझे दूसरी - तीसरी कक्षा से ही गणित अन्य
विषयों से आसान लगता था. और गणितज्ञ के विषय में मेरी भावना थी कि वह गणित
में सबकुछ जानता है. मैं भी गणितज्ञ बनना चाहता था और इसलिए उस पत्रिका में
रुचि थी. परन्तु अफसोस....उसे हासिल नहीं कर पाया ! समय बीतता गया. मेरे
भैया का एक पुस्तकालय हुआ करता था. एक दिन (शायद दसवीं कक्षा से पहले की
बात है - ठीक से याद नहीं) वे उस पुस्तकालय को साफ-सुथरा करने और पुस्तकों
को पुनः व्यवस्थित करने के लिए मुझे साथ लेकर गए. अचानक एक पत्रिका पर
ध्यान गई. आँखें फटी रह गई और मेरे आश्चर्य और हर्ष की सीमा न रही - यह वही
पत्रिका थी - 1987 के विज्ञान प्रगति का दिसंबर अंक. उसके साथ ही विज्ञान
प्रगति के ढेरों पुराने अंक पड़े थे - प्रत्येक अंक में किसी - न - किसी
गणितज्ञ की जीवनी. परन्तु यह अंक रामानुजन विशेषांक था - जो रामानुजन की
जन्म - शती पर प्रकाशित हुई थी और रामानुजन पर बहुत सारी सामग्री उपलब्ध
थी. इसमें गुणाकर मुले का लेख भी था जिसे इच्छुक पाठक अब राजकमल प्रकाशन
द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक "संसार के महान गणितज्ञ" में पढ़ सकते हैं.
मैंने उस पत्रिका को लाकर पढ़ा. तभी मुझे पता चला कि रामानुजन एक महान
भारतीय गणितज्ञ और संख्या - सिद्धांत शास्त्री है और उनके कई हजार सूत्र अब
भी गणितज्ञों के समझ से बाहर हैं. ये सभी सूत्र संख्याओं के गुणधर्मों से
संबंधित हैं. मैं अचंभित था कि आखिर इन सूत्रों में है क्या ! मैं समझता था
- संख्या के जो भी गुणधर्म हैं - वे सब भाज्य, अभाज्य, सम, विषम, महत्तम
समापवर्तक, लघुतम समापवर्तक, वर्गमूल इत्यादि के अतिरिक्त क्या हो सकता है.
सीमित ज्ञान के कारण मस्तिष्क को कुछ थाह नहीं मिल रहा था. अतः मैं आगे
संख्या- सिद्धांत ही पढ़ने का संकल्प लिया. यद्यपि इस संकल्प में आग में घी
डालने के लिए और भी कुछ करक थे (अभी बस इतना ही !!!). इसी पत्रिका में
मैंने रामानुजन के नोटबुक के विषय में सुना. मैंने उसे प्राप्त करने के लिए
उत्सुक हो गया. इसी पत्रिका से मुझे पता चला कि यह टाटा मूलभूत अनुसंधान
संस्थान के पुस्तकालय में उपलब्ध है. इसके बाद मैं कुछ कारणों से इन
नोटबुकों को भूल गया. और इन नोटबुकों से मेरा साक्षात्कार तब हुआ जब मैं
2009 में टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान, अनुप्रयुक्त गणित केंद्र, बंगलुरु
में M.Sc.में प्रवेश लिया. अभी मेरे पास सभी नोटबुक उपलब्ध हैं.
nice, thoda ur likho apne sansmaran....
जवाब देंहटाएंmere nanajee ke paas ko aunk tha vigyan pgarte ka.....wo maine bhula deya my msitake se
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